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यूपीआईटीएस : खादी सिर्फ कपड़ा नहीं, आत्मनिर्भरता और सतत जीवनशैली का प्रतीक बनकर उभरा

‘नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश इंटरनेशनल ट्रेड शो 2025’ में खादी का जादू छाया रहा। खादी न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर और आत्मनिर्भरता का प्रतीक ...


‘नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश इंटरनेशनल ट्रेड शो 2025’ में खादी का जादू छाया रहा। खादी न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बनकर सामने आई, बल्कि फैशन की दुनिया में अपनी आधुनिक पहचान भी दर्ज कराई। शानदार फैशन शो में मॉडल्स ने खादी के परिधानों की ऐसी श्रृंखला प्रस्तुत की, जिसमें परंपरागत शिल्प कौशल और आधुनिक डिजाइन का अनोखा संगम देखने को मिला। इसने यह संदेश दिया कि खादी ‘ट्रेडिशन टू ट्रेंड’ की यात्रा तय कर चुकी है और अब वैश्विक फैशन का हिस्सा बन रही है।

वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार लोगों से स्वदेशी अपनाने की अपील कर रहे हैं। खादी भी स्वदेशी परिधानों का महत्वपूर्ण अंग है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र को आत्मसात करते हुए उत्तर प्रदेश ने खादी और हैंडलूम को नई पहचान दी है। योगी सरकार खादी को सिर्फ परिधान तक सीमित नहीं मानती, बल्कि इसे आत्मनिर्भर भारत और पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली का मजबूत आधार मानती है।

प्रदेश सरकार की ‘वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट’ (ओडीओपी) योजना और विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना ने हजारों बुनकरों और कारीगरों को सीधा लाभ पहुंचाया है। सरकार का लक्ष्य है कि खादी को स्थानीय से वैश्विक स्तर तक ब्रांड बनाकर उत्तर प्रदेश को ‘हैंडलूम हब’ के रूप में स्थापित किया जाए। राज्य में खादी उत्पादों की खपत लगातार बढ़ रही है। युवाओं में टिकाऊ फैशन को लेकर बढ़ती जागरूकता ने खादी को आधुनिक जीवनशैली का हिस्सा बना दिया है। यही वजह है कि आज खादी को ‘फैब्रिक ऑफ फ्यूचर’ कहा जाने लगा है।

‘यूपीआईटीएस 2025’ में खादी की प्रस्तुति ने यह स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश न केवल परंपरा को संजो रहा है, बल्कि भविष्य की जरूरतों के अनुरूप उसे वैश्विक मंच पर भी स्थापित कर रहा है।

सीएम योगी का कहना है कि सरकार का प्रयास है कि खादी को सिर्फ एक कपड़े के रूप में नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, कारीगरी और सतत विकास के प्रतीक के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत किया जाए। सरकार का प्रयास इसी दिशा में है। उत्तर प्रदेश ने खादी को वैश्विक फैशन जगत में उतारकर दुनिया को यह दिखाया है कि स्थानीय शिल्प और आत्मनिर्भरता से भी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई जा सकती है।

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