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अक्षय को अकेले पार करना होगा यह चैलेंज, राइटर-डायरेक्टर नहीं निभा सके मजबूत साथ

राम नाम से पत्थर भी पानी में तैर जाते हैं, लेकिन क्या अक्षय कुमार की फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तैर सकेगीॽ इस दिवाली पर बॉलीवुड में यह बड़ा सवाल है...



राम नाम से पत्थर भी पानी में तैर जाते हैं, लेकिन क्या अक्षय कुमार की फिल्म बॉक्स ऑफिस पर तैर सकेगीॽ इस दिवाली पर बॉलीवुड में यह बड़ा सवाल है. डूबते करियर को हर हाल में संभालने की कोशिश में लगे अक्षय ने राम सेतु में खुद को पूरी तरह से भगवान भरोसे छोड़ दिया है. निर्देशक अभिषेक शर्मा का काम देख कर भी यही लगता है कि राम नाम पर निर्भर हो कर, ऐसे खोए कि कई जगह पर उन्हें अक्षय कुमार की दाढ़ी की कंटीन्यूटी का ही खयाल नहीं रहा. ऐसा लगता है कि पूरी फिल्म की शूटिंग के दौरान डायरेक्टर तय नहीं कर पाए कि अक्षय को क्या लुक देना हैॽ दाढ़ी रखनी है या नहीं रखनी हैॽ रखनी है तो कब, कितनी रखनी हैॽ कब छोटी और कब बड़ी रखनी हैॽ फिल्म के तमाम दृश्यों में अक्षय की दाढ़ी की काट-छांट इस कथा-पटकथा की तरह बेतरतीब है. अभिषेक शर्मा का रिकॉर्ड बताता है कि परमाणुः द पोखरण स्टोरी की औसत सफलता के अतिरिक्त तेरे बिन लादेन, द शौकीन्स, तेरे बिन लादेनः डेड ऑर अलाइव, द जोया फेक्टर और सूरज पर मंगल भारी फिल्मों में कामयाबी उनसे दूर ही रही है.


कुछ आस्था, कुछ सबूत

फिल्म की कहानी केंद्र में रही एक सरकार की सेतु समुद्रम परियोजना से जुड़ी है. सरकार ने सुप्रीम अदालत में शपथ पत्र दिया कि भारत-श्रीलंका के बीच बने राम सेतु का भगवान श्रीराम से संबंध नहीं है. राम सेतु एक जैविक-प्राकृतिक संरचना है. अतः इसे तोड़ कर दोनों देशों के बीच जहाजों की आवाजाही का रास्ता बनाने का अर्थ किसी धर्म की आस्था को ठेस पहुंचाना नहीं है. अदालत में पुरातत्व विभाग का उच्च अधिकारी आर्यन कुलश्रेष्ठ (अक्षय कुमार) यह शपथ पत्र देता है और पूरे देश में इसकी आलोचना होती है. कुलश्रेष्ठ को बर्खास्त कर दिया जाता है और वह एक जहाजरानी कंपनी के लिए यह सबूत जुटाने रामेश्वरम जाता है कि राम सेतु का भगवान श्री राम से कोई संबंध नहीं. मगर शोध के दौरान ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जो उसे गलत साबित करते हैं. हफ्ते भर के अंदर कुलश्रेष्ठ अदालत में गवाही देता है कि राम सेतु को भगवान श्रीराम से संबंधित ही माना जाना चाहिए क्योंकि यह सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं. तैरते हुए पत्थर, जो उस समुद्र तल में दूर तक कहीं नहीं मिलते. श्रीलंका में लंकापति रावण से जुड़े स्थलों के प्रमाण और रावण का अस्तित्व बताने वाली वहां की साहित्यिक धरोहर. श्रीलंका के एक पर्वत पर मिलने वाली संजीवनी बूटी जैसी वनस्पति, जो उत्तर भारत के अतिरिक्त विश्व में कहीं और नहीं मिलती.


किसने बचाया हीरो को

फिल्म राम सेतु की कहानी किसी प्रोजेक्ट की तरह आगे बढ़ती है. आर्यन कुलश्रेष्ठ का किरदार हमेशा जल्दबाजी में नजर आता है और भगवान के अस्तित्व को नकारते हुए अंत में आस्तिक जैसी बातें करता है. कहानी राम सेतु की तलाश के बहाने भगवान श्रीराम की ऐतिहासिकता को प्रमाणित करने के प्रयास करती है. राम सेतु में मिलने वाले तैरते पत्थरों की तलाश के साथ कहानी श्रीलंका पहुंचती है. जहां गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है. लेकिन लेखक-निर्देशक यह नहीं बताते कि जब कुलश्रेष्ठ और उसके साथियों के पीछे जो विलेन पड़े हैं, उनसे इन लोगों को कौन बचाता हैॽ बचाने वाले श्रीलंकाई सैनिक हैं या लिट्टे के लोग, जो जंगल में भागते इन लोगों को अपने साथ हेलीकॉप्टर में उड़ा ले जाते हैं. चाहे श्रीलंकाई सैनिक हों या लिट्टे संगठन के लोग, कैसे इन लोगों को यूं ही चले जाने देते हैंॽ कहीं कुछ साफ नहीं होता. अचानक कुलश्रेष्ठ की श्रीलंका यात्रा शुरू हो जाती है और वह उन-उन जगहों पर पहुंचने लगता है, जो रावण से जुड़ी बताई जाती हैं.


मजबूत विषय, कमजोर लिखाई

अक्षय की इस फिल्म का इंटरवेल से पहले का हिस्सा कमजोर है. गति भी धीमी है. दूसरे हिस्से में जरूर रफ्तार है. मगर यहां तर्क को लेखक-निर्देशक ने ताक पर रख दिया है. अंतिम अदालती दृश्यों में ही फिल्म अपनी थोड़ी साख बचा पाती है. वास्तव में राम सेतु जैसे मजबूत विषय को बहुत कमजोर ढंग से लिखा गया है. तथ्यों के ठोस आधार को अचानक बॉलीवुड के फार्मूलों से जोड़ कर उसे कमजोर कर दिया गया. यही वजह है कि प्रामाणिकता की तलाश करने वाली फिल्म कई जगहों पर बेअसर हो. आस्था का आधार ही फिल्म को कुछ देखने योग्य बनाता है. राम सेतु को फिल्म की तरह देखना कठिन है. अक्षय कुमार का किरदार दोहराव का शिकार है और इसकी पूरी जिम्मेदारी निर्देशक अभिशेक शर्मा की है. श्रीलंका में अक्षय-जैकलीन को गाइड के रूप में मिलने वाला एपी (सत्य देव) का किरदार फिल्म की जान है और अंत में उसके ट्रेक का खिलंदडपन ही कुछ हद तक याद रहने लायक है. जैकलीन फर्नांडिस और नुसरत भरूचा के हिस्से ऐसा कुछ नहीं, जिसे उल्लेखनीय कहा जाए. बौद्धिक विषयों को संभालना बॉलीवुड के मसाला फिल्मकारों के लिए हमेशा चुनौती रहा है और यह बात इस फिल्म में भी साफ दिखती है

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