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फर्जी हाज़िरी नहीं चलेगी, मेडिकल कॉलेजों में एनएमसी का कड़ा आदेश

  उदयपुर। देश में संचालित सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों की उपस्थिति को लेकर चल रहे फर्जीवाड़े पर अब लगाम लग जाएगी। नेशनल मेडिक...

 


उदयपुर। देश में संचालित सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों की उपस्थिति को लेकर चल रहे फर्जीवाड़े पर अब लगाम लग जाएगी। नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) के आदेश ने राजस्थान सहित देश के निजी मेडिकल कॉलेज संचालकों सहित सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों की नींद उड़ा रखी है। मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल्स में नियुक्त चिकित्सकों की उपस्थिति अब फेस बेस्ड आधार ऑथेंटिकेशन के जरिए लगेगी।

आज 1 मई 2025 से उपस्थिति दर्ज करने के इस सिस्टम को देश के सभी मेडिकल कॉलेजों में लागू कर दिया जाएगा। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) के दौर में इस सिस्टम को देश के हर मेडिकल कॉलेज पर लागू करना एनएमसी के लिए तो आसान रहेगा, लेकिन इसके बाद फर्जीवाड़ा कर चल रहे कई प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की मुश्किलें बढ़ जाएंगी, यहां तक कि कुछ तो बंद होने की कगार पर भी पहुंच सकते हैं।

डमी फैकल्टी का चेहरा और आंखों का कॉर्निया हर दिन कहां से लाएंगे

एनएमसी द्वारा जारी ऑर्डर के अनुसार फेस बेस्ड आधार ऑथेंटिकेशन में डॉक्टर को हॉस्पिटल में उपस्थित होना ही पड़ेगा, क्यों कि उसके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर में डाउनलोड AEBAS (Aadhaar Enabled Biometric Attendance System) एप्लीकेशन के जरिए जीपीएस लोकेशन ली जाएगी, जिसमें पता चलेगा कि चिकित्सक हॉस्पिटल में मौजूद है, इसके बाद एप्लीकेशन में चेहरे और आंखों की कॉर्निया के जरिए उपस्थिति दर्ज होगी। यह सभी डेटा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन को एनएमसी को शेयर भी करना होगा। इस आदेश से कई प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में चल रहा डमी फैकल्टी का फर्जीवाड़ा न सिर्फ उजागर होगा, बल्कि इस पर लगाम भी लगेगी। इस आदेश से सरकारी हॉस्पिटल के चिकित्सक भी खुश नहीं है, लेकिन इसने राजस्थान सहित देश के कई प्राइवेट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल संचालकों की नींद उड़ा दी है।

चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी

मेडिकल स्टूडेंट्स और मेडिकल शिक्षा जगत के लिए एनएमसी का यह प्रयोग अच्छा साबित हो सकता है, क्यों कि जब चिकित्सक हॉस्पिटल में होंगे तो वे मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ाएंगे भी, इससे मेडिकल शिक्षा का स्तर भी उठेगा। यह बात इसलिए भी अहम हो जाती है, क्यों कि आज देश में सबसे महंगी एजुकेशन की बात की जाए तो उसमें मेडिकल एजुकेशन भी शुमार है। किसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने के लिए परिजनों को 1 करोड़ रूपए या इससे अधिक तक की फीस चुकानी पड़ रही है, जबकि पीजी कोर्स के लिए फीस 1 से 2 करोड़ तक जाती है। मेडिकल स्टूडेंट्स भविष्य में जब डिग्री पूरी कर किसी हॉस्पिटल में प्रेक्टिस करते हैं तो उनके हाथों में मरीज की जिंदगी होती है।

मेडिकल कॉलेज को फैकल्टी की कमी से कैसे होता है सीधे 100 करोड़ का नुकसान

देश में कहीं भी मेडिकल कॉलेज संचालित करने के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) से परमीशन/अप्रूवल लेना अनिवार्य होता है। यहां तक कि मेडिकल कॉलेज में यूजी और पीजी स्टूडेंट्स की कितनी सीट होंगी, यह परमीशन भी नेशनल मेडिकल कमीशन ही देता है। नेशनल मेडिकल कमीशन की मेडिकल असेस्मेंट एंड रेटिंग बोर्ड (MARB) की टीम हर वर्ष प्रत्येक मेडिकल कॉलेज में जाकर निरीक्षण करती है, विभिन्न नियमों की पालना के साथ ही मेडिकल कॉलेज में यूजी और पीजी के कोर्स चलाने के लिए अनुमत सीट के अनुपात में डॉक्टर फैकल्टी की निर्धारित संख्या होना भी अनिवार्य होता है।

मेडिकल कॉलेज में निर्धारित संख्या के अनुरूप डॉक्टर फैकल्टी नहीं मिलती है तो एनएमसी मेडिकल कॉलेज की हर वर्ष सत्र चलाने की परमीशन को कैंसल कर सकता है। परमीशन नहीं मिलने पर प्राइवेट मेडिकल कॉलेज संचालकों को प्रति स्टूडेंट 1 करोड़ रूपए की फीस के अनुसार सीधे 100 करोड़ या इससे अधिक का नुकसान होता है।

ऐसे चलता है डमी फैकल्टी खेल

एनएमसी द्वारा निर्धारित नियमों की पालना में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज संचालकों के लिए बड़ा खर्चा चिकित्सकों (डॉक्टर फैकल्टी) को नियुक्त करना होता है। इस खर्च को बचाने के लिए ही कुछ मेडिकल कॉलेज के प्रबंधक डमी फैकल्टी रखते हैं। मतलब डॉक्टर फैकल्टी हॉस्पिटल नहीं आएंगे, लेकिन उसकी नियुक्ति और उपस्थिति हॉस्पिटल में होगी। उदयपुर, प्रदेश सहित देश के कुछ मेडिकल कॉलेज में यह हालात है कि डॉक्टर फैकल्टी किसी दूसरे राज्य के शहर में प्रेक्टिस कर रहे होते हैं, लेकिन उनकी नियुक्ति दूसरे राज्य के हॉस्पिटल में बतायी गयी होती है। डमी कैंडीडेट बनने के बदले चिकित्सक बिना काम के सिर्फ चिकित्सक के रजिस्ट्रेशन नंबर उपयोग होने का हॉस्पिटल से वेतन भी उठाते हैं।

अभी तक ऐसे लग रही थी उपस्थिति

अभी तक मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सकों की अटेंडेंस फिंगर इम्प्रेशन बेस्ड आधार ऑथेंटिकेशन के जरिए एनएमसी AEBAS (Aadhaar Enabled Biometric Attendance System) पर होती थी। सूत्रों के अनुसार इस उपस्थिति को मेनुपलेट करना देश के कई मेडिकल कॉलेजों के लिए काफी आसान था। सूत्रों के अनुसार मेडिकल कॉलेज संचालक चिकित्सक के ओरिजनल फिंगर इम्प्रेशन के सैंपल लेकर आर्टिफिशियल फिंगर इम्प्रेशन बनवा लेते हैं। आर्टिफिशिलय फिंगर इम्प्रेशन से चिकित्सकों की हॉस्पिटल आए बगैर ही उपस्थिति दर्ज हो रही थी, जबकि वे एक डमी फैकल्टी होते थे।

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